पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१२०

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अजातशन। यह भी क्षणिक इसे कहीं टिकाव है नहीं। सब लौट जायगे उसी अनादि काल में ।। । अधीर न हो चित्त विश्व-मोह-बाल में ।।। अजात०-"कहाँ गया । मेर क्रोध का फन्दुफ, मेरी फरस्य का खिलौना, कहाँ गया । रमणी शीघ्र घसा-वह घमी कोशल सम्राट् कहाँ गया " मलिका-"शान्त हो। राजकुमार फुणीक । शान्त हो । तुम फिसे खोजते हो ? बैठो। अहा सुन्दर मुख्न, इसमें भयानकता क्यो ले आते हो ? सहज सुन्दर बदन को क्यों विकृत करते हो ? शीतल हो, विश्राम लो । देखो, यह अशोफ की शोतल छाया तुम्हारे दय फो कोमल बना देगी-यैठ जाओ।" अजात०-(मुग्ध सा बैठ जाता है) "क्या यही प्रसेनजिव नहीं रहा, श्रमी मुझे गुमचर ने समाचार दिया है। ____ मल्लिका-"हाँ, इसी आश्रम में उनकी शुश्रुपा हुई है। और घे स्वस्थ होकर अभी गये हैं। पर तुम उन्हें लेकर क्या करोगे। सुम उष्णरक्त चाहते हो था इस दौड़ धूप के पाद का शीवरू, हिमजल ? युद्ध में जय यशार्जन कर चुके, तष हत्या करके क्या अप हत्यारे बनोगे ? वीरों को विजयलिप्सा होनी चाहिये न कि इत्या की अजात-"देवी ! आप कौन हैं ? इदय नम्न होकर आप ही प्रणाम करने को मुक रहा है। ऐसी पिघला देनेवाली वाणी यो मैने फमी मुनी नहीं ।