पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१२५

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मा दूसरा। आनन्द--"देम्बिये। अभी धिम्या को लेकर उसने किन्न पदा अपवाए लगाना चाहा था और भापकी मर्यादा गिरानी घाही थी। गौतम-"फिन्तु सत्य सूर्य को कहीं कोई घलनोसे टॅफ लेगा? इम सणिक प्रयाह में मप विलीन हो आयेंगे। मुझे अफार्म्य करने से क्या लाम ! विष्धा का ही देखो, अब यह बात म्बुल गई कि उसे गर्भ नहीं है वह फेवल मुझे अपवाद लगाना चाहती थी। सभी एमफी कैसी दुर्गति हुई। शुद्ध युधि फी प्रेरणा से सत्कर्म करते रहना चाहिये। एमगे को भोर मद्रासोन हो जाना ही शत्रुता फी पराकाष्ठा है। प्रानन्द ! घूमरों का अफ्फार मोचने से अपना हदय मी मलिन होता है।" . भानन्द-"यथार्य हे प्रभो, (श्यामा के शव को देखफर)भरे यह क्या ? चलिये गुरुदेष ! यहाँ से शीघ्र इट चलिये। देखिये, ममी यहाँ कोई कापड सपटिस हुआ है। ____ गौतम-"अरे यह तो कोई भी है, अठायो मानन्द ! उसे सहायता की आवश्यकता है।" मानन्द-"तपागत! आपके प्रतिपन्दी इसमे पड़ा जाम स्ठावेंगे। यह सूतक स्त्री विहार में लेजाकर क्या भाप कसाहित होना चाहते हैं ?" ___गौसम-"क्या फरुणा का आदेश कलह के बर से मूल मानोगे ? यदि हम लागों की सेवा से मह फष्ट से मुफ हो ई, सष १ और मैं निश्चय फरफे कहता हूँ कि यह मरी नहीं है।