पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१४३

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- -.. - - -. - . भतीसर। । अमात-"वय ! और किमी समय ! मैं अपने स्थान पर माता हूँ। लामो राजनन्दिनी !" वामिरा-"किन्तु कारायण ! मैं प्रात्मसमर्पण कर चुकी हूँ 1m फारायण-"यहाँ सक ! कोई चिन्ता नहीं। इस समय तो । पलिये । क्योंकि महाराज पाया ही चाहते हैं।" . ( मनात अपने मंगाने में नाता है, एक मोर कारायण और रामकुमारी वागिरा गाती है,रसरी पोर से वासपी और प्रसेनमित का प्रवेश।) प्रमेन०--"क्यों कुणीक, अथ क्या इच्छा है ?" पासपी--"न न | माई खोल दो। इमे मैं इस तरह देख कर पाव नहीं कर सकती हूँ। मेरा पच्चा कुणीक " प्रसेन०-"वहिन । जैसा कहो । (खोल देता है। वासवी पक्ष में ले शेती है) प्रजात-"फोन ! विमावा नहीं तुम मेरी माँ हो । माँ! इतनी ठेवी गोद तो मेरी माँफी मीनहीं है। बाज मैन जननी कीशीतलता का अनुमव फिण है । मैन पड़ा अपमान किया है माँ ! क्या सुम जमा करोगी ?" बामवी-"वत्स कुणीक । वह अपमान भी क्या अप मुझे स्मरण है । सुम्हारी माता, तुम्हारी मा नहीं है, मैं तुम्हारी माँ हूँ। पद सो साइन है, उसने मेरे सुकुमार यच्चे को पन्दी-गृह में भेज __दिया, ऐसी नसेजना दी । भाई, मैं इसे इसके सिंहासन पर भेजती हैं। तुम इसके जाने का प्रपन्च कर दो।"