पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१४४

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अजातशत्र। अजास०-"नहीं माँ,अव कुछ दिन उस विषैली वायु मे अलग गहने दो। तुम्हारी शीतल छाया फा विभाम मुम से अमी नहीं छोरा जायगा ॥ (घुटमें टेक देता है। वासवी अभय का हाप रखतोर) पटपरिवर्चन। दृश्यतामा स्थान-कानन का प्रान्त । (विरुद्धक और मतितका) विरुक-"मस्जिका ! मैं तो आज टहशवा टहलता फुटी से । इसनी दूर चला आया हूँ। अब सो मैं सपन हो गया, तुम्हारी इस ' सेवा से मैं जीवनमर उऋण नहीं हूँगा।" __“मस्तिफा-"अच्छा फिया विरुद्धकं ! सुम्हें स्वस्थ्य देख कर मैं बहुस प्रसन्न हुई। अब सम अपनी राजधानी को लौट जा सर्फचे हो; किन्तु मैं सुम से कुछ दूंगी।" विरुद्धक-"मुझे मो तुमसे बहुत कुछ कहना है । मेरे रदय में पड़ो स्वशयनी है । यह तो तुम्हें विदित था कि सेनाति बन्भुल कों