महतीसरा +A मैने ही मारा है। और उसी की तुमने इतनी सेवा की इससे क्या मैं समम ? क्या मेरी शंका निर्मुल नहीं है ! कह वो मल्लिका !" मस्लिका-" विरुवक 1 तुम उसफा मनमाना प्रर्य लगाने का प्रम मद फरो। सुमने सममा होगा कि मल्लिका का इदप कुछ विपलिय है ! हि तुम रामकुमार हो न, इसीलिये। अच्छी पात क्या तुम्हारे मस्तिष्क में कमी आई ही नहीं ! मल्लिका उस मिट्टी की नहीं है जिसकी तुम समझते हो।" । विरुवक-"किन्तु मस्सिका। अवीव में तुम्हारे कारण मेरा वर्तमान मिगा था। पिता ने अप तुम से मेरा ब्याह करने को अम्वीकार किया उसो समय से मैं पिता के विरुद्ध हुभाभीर उस विष फा यह परिणाम दुभा ॥ ६ मल्लिका-'इसके लिये मैं फतम नहीं हो सकती । राजकुमार ! मैं तुम्हारा कलक्ष्मय जीवन भी बघाना अपना धर्म समझती हैं। और यह मेरी मिरवमैत्री की परीक्षा थी। जब इसमें में उत्तीर्ण हो गई तब मुझे अपने पर विश्वास हुभा । विरुद्धक, तुम्हारा रक-फटपित हाय में भी नहीं सकती। तुमने कपिलवस्तु के निरीदि प्राणियों को किसी की मूल पर निर्दयवा से पप किया. सुमने पिता से विद्रोह किया, विश्वासपात फिया, एक वीर को घोमा देफर मार माला और मपन देश के जन्मभूमि के विनर पशहरा किया। तुम्हारे सा नीच श्रीर कौन होगा । फिना पासप मानकर भी मैं तुम्हें रणक्षेत्र से सेवा के लिये उठालाई
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