सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अजातशत्रु विरुद्धक-"तव क्यों नहीं मर जाने दिया ? क्यों कलाही जीवन बचाया-भोर अव " मलिका-"तुम इसलिये नहीं बचाये गये कि फिर भी एक विरका नारी पर बलात्कार और लम्पटता का अभिनय करो। जीवन इसलिये मिला है कि पिछले कुकर्मों का प्रायश्चित्त करो। अपने को सुधारो।" (पामा का पा) श्यामा-"और भी एक भयानक अभियोग है इस नर राक्षस पर ! इसने एफ विश्वाम करने वाली स्त्री पर अत्याचार किया है, उसकी हत्या की है। क्या शेलेन्द्र ?" विरुदफ-"अरे श्यामा " श्यामा-"हाँ शैलन्द्र, सुम्हारी नीचता का उदाहरण मैं अभी जीवित हैं। निर्दय । धामपाल की सरहकर कर्म सुमने किया। मोह जिमके लिये मैन राजरानी का मुख छोड़ दिया, अपने वैभव पर ठोकर लगाया, उसका ऐसा फर्म। प्रतिहिंसा सो नहीं पश्चाताप मे सारा शरीर भस्म हो रहा है। __मल्लिका-"विरुद्धक ! यह क्या, जो रमणो तुम्हें प्यार करती है, जिसने सर्वस्व तुम्हारे अर्पण किया था, उस तुम न पाह। सके। तुम्हारे सा नीच भा रमणो रम को पाने का प्रयास फरसा है जिसकी छाया भी छ सफन के योग्य नहीं हो।" विरुद्धफ-"म इमे घेश्या समझता था ।" ११४