पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५३

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भरतीसरा पदर लिव फी गई है? देखो, जप गौतम ने स्त्रियों को भी प्रत्रज्या मेने की माझा दी, सय क्या वे ही सुकुमार स्त्रियाँ परिघ्राजिका के कठोर प्रव को अपनी सुफुमार देहपर नहीं उठानेका प्रयास करती?" फारायण–'देयी । किन्तु यह साम्य और परित्राजिका होने की विधि भी वो नन्ही मनुष्यों में से फिसो ने फैलाई है। स्वार्य स्याग के फारण पे उसफी पोपणा करन में समर्थ हुप, फिन्तु समाज मर में न तो स्वार्थी स्त्रियों की कमी है न पुरुपों फी। और,सय एक उदय हैं भी नहीं. फिर मनुप्य समाज पर ही पाप क्यों जितनी पन्त फरण की पत्तियों का विकास सदापार का ध्यान करके होता है उन्हीं को जनता'फर्तव्य का रूप देती है। मेरी प्रार्थना है कि तुम भी उन स्वार्थी मनुष्यों की कोटि में मिल कर पवर न यन जाओ। विश्वभर में मय फर्म सब के लिये नहीं है, इसमें कुछ विभाग है अवश्य । सूर्य्य अपना काम जसता पलवा हमा करता है और चन्द्रमा उसी पालोफ को शीतलवा से फैलावा है। मया उन दोनों से पदला हो सकता है ? मनुष्य कठोर परिमम करके भौर नीयन समाम में प्रकृति पर पथाराक्ति अधिकार फरके मी एक शासन चाहता है, जो उसके जीवन का परम प्येय है, उसका एफ शीतल विमाम है। भोर मह स्नेह-सया-फरुणा की मूर्सि च्या सान्पना का घमय वरदहस्त का मामय, मानव समाज की सारी वृत्तियों की कुजी, विपशासफ की एकमात्र अधिकारिणी, प्रकृति स्पसमा लिमों की सपाघारपूर्ण स्नई का शासन है। उसे घोड़कर असमर्थता, दुर्वलता प्रकट करके इस दौर पूप में