म पदिला। छलना-"यही कि मैं छोटी हूँ इसीलिये पटरानी नहीं हो सकी, और वह मुझे इसी यास पर अपरस्थ किया चाहती हैं।" __मविम्बसार-"छलना ! यह क्या ! तुम तो गजमाता हो । देवी पासपी के लिये थोड़ा मा भी सम्मान कर लना तुम्हें विशेष नीचा नहीं यना मफ्ता-उसने कभी तुमागे अपहेलना भी तो नहीं की। छलना-"इन मुजावों म में नहीं पा सकती। महागज ' मुझ में लिच्छिवी रक्त वी शीघ्रता स दौड़ा-करता है। यह नौरव अपमान, यह माकेतिक घृणा, मुझे सहन नहीं, और जय कि खुलकर मजाप्त का अपकार किया आ रहा है तव सो- ___म० बिम्बसार-"ठहरो! तुम्हारा यह अमियोग अन्यायपूर्ण है। क्या मी कारण तो पेटी पद्मावती नहीं चली गई ? क्या हमी कारण तोमजास मेरी भी आज्ञा सुनने में आनाकानी करने नहीं लगा है ? यह कैसा उत्पात मचाया चाहती हो?" मलना-"मैं उत्पात रोकना चाहती हूँ। आपफो अजात के लिये युवराज्याभिषेक की घोपणा आजही करनी पड़ेगी।" घामवी--(प्रवेश करके) "नाथ, मैं भी इसमें सहमत हूँ। में पाहती हैं कि यह उत्सव स्त्र का और थापकी आशा लेकर मैं सोशल जाऊँ। मुम्म पाज आया है, भाई ने मुझे भुलाया है।" म० मिम्बमार-"कौन, देवी पासवो !" पासपी-"हो महाराज "
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