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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/७०

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.अजातशत्रु । मान दृश्यछटका) (ोगामी र पप म मीवर ) जीवक-(प्रापही आप ) "गजकुमारी म मट भी हुई और गौतम फ दर्शन भी, किन्तु मैं तो फित हो गया है कि मैं क्या करूं । वामवी देवी और उनकी पन्या पावती, छोना की एकही तरह पी अमाया है। जिप्त अपना सम्हालना ही दुरफर है, वह वासवी की क्या कर सदेगी। सुना है कि कई दिन से पद्मावती के मन्दिर में उपयन जाते ही नहीं और प्राचार स्यवहार मे कुछ असन्तुष्ट से विखलाई पड़ते हैं। क्योंकि उन्हीं के परिजन होने के कारण मुझ से भी अच्छी तरह न योले और महाराज बिम्पसार की कथा सुन कर मी कोई मत नहीं प्रकट किया । दासी आने को थी, पर भी नहीं पाई । क्या करें, वहाँ जाफर बैठे कि फोशल ही जाय- (दासी का प्रयेश) मामी-"नमस्कार ! महादेवी ने कहा है कि भार्ग्य जीवक मे कहो कि मेरी चिन्ता न फरे । माता जी की छेख रेख उन्हीं पर है, प्रत वे शीघ्र ही मगध,पलट जायें। हमारे देवसा जम प्रमम होंगे तो उनमे अनुरोध करके कोई उपाय निकालँगी और पिता जी के श्री चरणों फा मी दर्शन करेगी। इस समय सो उनका चले आना ही भेयस्फर है। महाराज की विरक्ति से मैं उनसे भी