प्रजातशम्। अजात-"यह हमें भी स्वीकार है।" देवदास-"मेरी सम्मति है कि माम्राज्य का सैनिक अधिकार 'सम्राट् को लेकर सेनापति के रूप से कोशल के साथ विग्रह और उसे दमन करने कोअग्रसर होना चाहिये। समुद्रपच गुम-प्रतिमि बनकर फाशी जावें और प्रजा को मगध के अनुकूल बनायें, तथा शासन भार परिपद अपने सिर पर ले। दूसरा सभ्य-" यदि सम्राट पिम्पसार ।इमसे अपमान सममें 1 . देवदत्त-" जिसने राज्य अपने हाथ से छोड़कर स्त्री की वश्यता स्वीकार कर ली। उसे इसका ध्यान भी नहीं हो सकता। फिर भी उनके समस्त व्यवहार वासवीदेवी की अनुमति से होग। और भी एक बात है वह मैं भूल गया था वह यह किस काय को उत्तम रूप से चलाने के लिये महादेवी छलना परिपद का देख रेख किया करें।" समुद्रक्स-"यदि आया हो तो मैं भी कुछ कहूँ।। 15 परिपद-"हाँ, हाँ, अवश्य - समुद्रवत्त-" यह एफ भी सफल नहीं होगा जब सक देवी वासवी का हाथ पैर चलता रहेगा। हमारी प्रार्थना है कि यदि रोग निश्चय के साथ राष्ट्र का कल्याण चाहते हैं तो पहिले इसका प्रयन्ध करें। देवदस-"तुम्हारा तात्पर्य क्या है।" समुद्रदत्त-“यही कि पासबोदेवी को महारान लिम्पसार से ५४
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