पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/९०

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अजातशत्र। " दृश्य दूसरा स्थान पुष । ( मार्ग में बन्धुल) यन्घुल- (स्वगत) इस अभिमानी राजकुमार से तो मिलने की इच्छा भी नहीं हाती-फिन्तु क्या करूं, उसने इस तरह से प्रार्थना की है कि अस्वीकार भी नहीं कर सका। कोशलनरेश ने जो मुझे फाशी का मामन्त बनाया है वह मुझे अच्छा नहीं लगता, किन्तु राजा की आज्ञा--मुझे तो सरल और सैनिक जीवनही, रुचिकर है, यछ सामन्स का आरम्बरपूर्ण पद कपटाधरण को सूचना देता है। महाराज प्रसेनजिस ने कहा है फि 'शीघ्र ही मगध काशी पर अधिकार करना चाहेगा इस लिये तुम्हारा यहाँ आना आवश्यक है।' यहाँ का दरम्सनायक तो मुझसे प्रसन्न है अच्छा फिर देखा जायगा । ( टहलता है) यह नहीं समझ में आया कि एकान्त में कुमार क्यों मुझसे मिलना चाहता है।" (विस्तक का प्रवेश) विरुद्धक- "सेनापते ! कशाल सो है।" पन्धुल-"कुमार की जय हो । क्या आज्ञा है। क्या वहाँ पर आप नहीं पा सकते थे। माप क्यों अकेले है ?