पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/९५

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भक दूसरा। स्पनन नाम को भी नहीं है। क्या तुम्हारा इदय फेवल मासपिएर है। उसमें रक्त का मार नहीं। नहीं नहीं, ऐमा नहीं-प्रियतम- (सथ पाकर गातो है) यहुत छिपाया, रयज पहा श्रम, सम्हालन पा समय नहीं है। अखिल विश्व में सतज फैजा, अनम हुमा यह प्रणय नहीं है। कहीं ताप पर, गिर न पिमली कहीं न पाहो कालिमा की। तुम्हें न खवकर, शोफ मेर __महाशून्य है हृदय नहीं है। तटप रही हैं कहीं कोकिला, कहीं पपीहा पुकारता है। यही विरद क्या तुम्हें पुहासा ! कि नीम नौरद सदय नहीं है। जली दीपमालिका प्राण की, हृदय पुरी स्पछ हो गई है। पलक पावरे पिछ। धुकी हूँ, न और कोई ह, मय नहीं है। चपल निस्ल कर महा चले भय, इमे कुषल दो मृडल परण से,