पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/९६

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अजातशत्रु षि प्राह निकले, दय हृदय से, भला कहो यह विमय नहीं है। (दोनों हाथ में दाप मिलाप ही इए जाते हैं) पटपरिवतेन। दृश्यतॉसय मल्लिका का उपचन । (मस्तिका और मदामाया) - मलिका-बीरामय युद्ध का नाम ही सुनकर नाच उठता है। शक्तिशाली मुजदगड, फड़फने लगते हैं । मला मेरे रोकने से वे हक सकते थे। कठोर फर्मपथ में अपने स्वामी के पैर का फटक मो मैं नहीं होना चाहती । यह मेरे अनुराग, सुहाग की वस्तु है। फिर भी उनका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व है जो हमारी शरमप्पा में चन्द करके नहीं रखा जा सफचा ।' महान दय को फेवल विलास की मदिरा पिला कर मोह सेना ही स्त्री का कर्तव्य नहीं है। महामाया- 'मलिफा, सेरा कहना ठीक है फिन्त फिर मी-1 -