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अतीत-स्मृति
 


हुए नहीं। "लोमहर्षण" एक जाति थी जो लोगों को कौतूहल-वर्द्धक घटनायें सुनाया करती थी, जिनके श्रवण से शरीर के रोम खड़े हो जाते थे।

पुराण समय समय पर बनाये गये, यह बात पुराणों ही से सिद्ध होती है। जिस क्रम से पुराण बनाये गये हैं उस क्रम का वर्णन प्रायः सभी पुराणों में है। सबसे पहले ब्रह्म-पुराण बना। उसके पीछे (२)पद्म (३) विष्णु (४) वायु (५) भागवत (६) नारद (७) मार्कण्डेय (८) अग्नि (९) भविष्य (१०) ब्रह्म-वैवर्त (११) लिङ्ग (१२) बराह (१३) स्कन्द (१४) वामन (१५) कूर्म (१६) मत्स्य (१७) गरुड़ और सबसे पीछे (१८) ब्राह्माण्डपुराण। सूची सब पुराणो में पीछे से जोड़ दी गई जान पड़ती है।

जो लोग पुराण पढ़ते थे वे सूत कहलाते थे। आधुनिक स्मृतियों में सूतों और मागधो का स्थान बहुत नीचा कर दिया गया है। वायु-पुराण में लिखा है कि सूत को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं परन्तु महाभारत की भूमिका मे जिन सूत जी का नाम है वे इतने मान्य थे कि ब्राह्मणों तक ने उनकी प्रतिष्ठा की थी। कितने ही पुराणो में वर्णन है कि नारद और मार्कण्डेय के सदृश मुनियों तक ने पुराणेतिहास सुनाकर सूत का काम किया था। वैदिक समय मे बड़े बड़े प्रतिष्ठित ब्राह्मण पुराण कहते थे। पीछे से सूद लोग पुराण सुनाकर रुपया कमाने लगे। मालूम होता है कि इसी कारण समाज ने उनको नीचे गिरा दिया। एक कारण और