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अतीत-स्मृति
 


के लिए गुनगुना दूध शरीर-सेचन के लिए, अजकर्ण नाम की औषधि का काढ़ा "उत्सादन" के लिए, खस पड़ा हुआ कुएँ का पानी स्नान के लिए, चन्दन लेप के लिए दिया जाय। खाने के लिए आँवले का रस मिला हुआ यूष और दाल आदि दे। दूध और मुलहटी से सिद्ध किये हुए तिल "अवचारण" के लिए दे। दस रातों तक यह काम जारी रक्खे।

इसके बाद सब से भीतर के कमरे को छोड़ कर दूसरे कमरे या दरजे में आवे। उसमें भो दस रात पूर्ववत् रहे। फिर सब से बाहर के, अर्थात् पहले, कमरे मे आवे और आत्मा को स्थिर करके उस रातों तक वहाँ रहे। थोड़ी देर धूप और वायु का सेवन करके भीतर चला जाया करे। परन्तु भूल करके भी कभी अपना मुँह आईने मे न देखे। क्योंकि उस समय सोमपायी के मुँह पर अद्भुत सौन्दर्य आ जाता है। इसके बाद १० रात क्रोध आदि विकारो के वशीभूत न हो। सब प्रकार के सोमामृत के सेवन की यही विधि है। विशेष करके बल्ली प्रतान और क्षुप जाति के सोम का सेवन करना चाहिए। उनके सेवनीय रस की मात्रा कोई पाव भर है। परन्तु ऊपर सोम के जो २४ प्रकार गिनाये हैं उनमें बल्ली और क्षुप नाम नही आया। शायद उन्हीं में से किसी दो के ये नामान्तर हैं।

अंशवान् नाम के सोम का रस सोने के पात्र में निचोड़े, चन्द्रमा का चाँदी के पात्र में। उनके सेवन से मनुष्य को अणिमादिक आठ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। यही नहीं, किन्तु वह