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अतीत-स्मृति
 


संज्ञपन हो जाने पर पशु के नीचे लिखे अंग काट-काट कर "शामित्र" नामक अग्निकुण्ड में भूने जाते थे। फिर मन्त्र गाते-गाते उसकी आहुति दी जाती थी। वे अंग ये हैं-कलेजा, जीभ, वक्ष, तिल्ली, वृक्कद्वय, अगला बायां पैर, दोनो रानें, दाहिनी श्रेणी, वायुनाल और चर्बी आदि। और भी कई अंग काट कर उनसे होम किया जाता था। इन सब क्रियाओं का नाम था "अग्निष्टोमीय पशुयाग"।

इसके बाद ही पुरोहित ब्राह्मण, चात्वाल और उत्कट-भूमि के उत्तर भाग मे बहते हुए जलाशय से जल लाकर यज्ञशाला में रखते थे। उस लाये हुए जल का वैदिक नाम बसतीवरी था। उस दिन, रात भर, जाग कर तजमान ब्राह्मणों से नाना प्रकार के इतिहास और वैदिक बातें सुनता था। इसी कारण उस दिन का नाम उपवस्य था।

इसके बाद के दिन का नाम सूत्या-दिवस था। उस दिन सबेरे अध्वर्यु आदि ब्राह्मण, स्नान और आलिक कर्म करके, जो जो कार्य करने की विधि होती थी उसमे लग जाते थे। यथा-

पहिले हविर्धान के छकड़े से सोम उतार कर उसे वे उपसव-स्थान में रखते थे। अध्वर्यु बहुत सबेरे उठ कर होता को "प्रेष-मन्त्र" से आवाहन करते थे। होता भी प्रातरनुवाक पढ़ कर अश्विनीकुमार का स्तवन करते तथा आग्नीध्र-पुरोडाश आदि प्रस्तुत करने लगते थे और उन्नेता सोमपान सजाते थे *[१]


  1. * सोमपात्र दो प्रकार का होता है-ग्रह और स्थानी। यह लकड़ी