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प्राचीन भारत में शस्त्र-चिकित्सा
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जैसी नियमबद्ध चिकित्सा का वर्णन उसमे नही। अतएव अथर्ववेद की रचना के सात आठ सौ वर्ष बाद चरक और सुश्रुत की रचना हुई होगी। इसी बीच मे रोग-चिकित्सा-ज्ञान की अच्छी‌ उन्नति भारत मे हुई। चरक की भाषा ब्राह्मण-युग के अन्तिम समय की है और सुश्रुत की उससे भी पीछे की। चरक के विषय में लोग कहते है कि पतञ्जलि ने उस पर टीका की है। कोई कोई तो कहते है कि पतञ्जलि ने उसका पुनः संस्कार ही किया‌ है। पतञ्जलि ईसा के पहले दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे। यदि यह मान लें कि चरक उनसे दो सौ वर्ष पहले विद्यमान थे तो उनका समय ईसा से ४०० वर्ष पहले होता है।

सुनते है, बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने सुश्रुत का प्रतिसंस्कार किया था। वे सुश्रुत के उत्तर-तन्त्र के रचयिता भी माने जाते हैं। नागार्जुन ईसा से पूर्व पहली या दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे। इससे सुश्रुत का काल भी ईसा के पूर्व तीसरी या चौथी शताब्दी मानना चाहिये। ईसा की पांचवी शताब्दी में लिखी गई, बावर साहेब की आविष्कृत पुस्तक ही (Bower Manuscript) से जाना जाता है कि उस शतब्दी में सुश्रुत की बहुत प्रसिद्धि हो चुकी थी और वह बहुत ही प्राचीन ग्रन्थ माना जाता था।

वाग्भट का समय भी अनिश्चित है। हार्नली साहेब का मत है कि वाग्भट दो थे-अष्टाङ्गसङ्ग्रह बनाने वाला वाग्भट पहला और अष्टाङ्गहृदय वाला दूसरा। इसी मत का अनुसरण