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१७-प्राचीन भारत में जहाज़

वेदो में इस बात के यथेष्ट प्रमाण हैं कि वैदिक युग में भारतवासी आर्य्य व्यापार-वाणिज्य आदि के लिए समुद्र-यात्रा करते थे। भारतवासियों ने जहाज बनाने का काम विदेशियों से नहीं सीखा। जिस समय अन्य देशो में रहनेवाले लोग असभ्य और बर्बर थे उस समय भारतवासी सभ्यता के ऊँचे शिखर पर पहुँच गये थे। उन्होंने, उसी समय, संसार की सारी जातियों के सम्मुख अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध कर दिया था। तरह तरह की व्यापारोपयोगी चीजें वे नौकाओं और जहाजों द्वारा, अपने देश के भिन्न भिन्न स्थानों को पहुँचाते थे। साथ ही द्रव्योपार्जन के निमित्त वे समुद्र-यात्रा करके विदेशों में भी पहुंचते थे। वैदिक साहित्य में जहाजों के आने जाने के मार्ग का, अनेक प्रकार के समुद्रगामी जहाज़ों का समुद्र में पैदा होनेवाली वस्तुओं का, तथा समुद्र-यात्रा और जहाज़ों के तबाह होने आदि का वर्णन है। इस से सष्ट है कि बहुत समय पहले वैदिक युग में भी हिन्दुओ को विदेश को व्यापारोपयोगिनी सब वस्तुओं का पूरा पूरा ज्ञान था। वेदों के अनेक सूक्तों में इस बात के अनेक प्रमाण मौजूद हैं। उदाहरण के लिए नीचे हम एक सूक्त उद्धृत करते हैं-

अरित्रं वां दिवस्पृथुतीर्थे सिन्धूना रथः। धिया युयुस्र इन्दवः।