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१९-तक्षशिला की कुछ प्राचीन इमारतें

भारतवर्ष के शतशः नहीं, सहस्रशः कीर्तिस्तम्भ काल की कुक्षि मे चले गये हैं। उनका अब कही पता नहीं। पुराने खंडहर खोदने से यदि कही उनका कोई भग्नांश निकल आता है तो पुराण-वस्तु-विज्ञानी उससे ग्रीस, फारिस, आसिरिया और बैबीलोनिया की बू निकालने लगते हैं। ऐसी कारीगरी उस समय ग्रीस ही में होती थी, अतएव भारतवासियो ने इसे उसी देश के कारीगरो से सीखा होगा। अथवा ऐसे मन्दिर या महल उस युग में फारिस या काबुल ही में बनते थे, इस कारण, हो न हो, यह वहाँ की नक़ल है। वे लोग इसी तरह के तर्को की उद्भावनायें करने लगते हैं। पहले इस प्रकार के वकों का जोर कुछ अधिक था, पर अब कुछ कम हो गया है। अब भारतवर्ष की पुरानी सभ्यता और पुराने कला-कौशल के चिह्न अधिक मिलते जा रहे है। इस कारण पुरानी तर्कना को कुछ इमारतें गिरने नही तो हिलने जरूर लगी हैं। क्योकि इन चिह्नों से भारतवर्ष की सभ्यता के बहुत पुराने होने के प्रमाण पाये जाते हैं। कुछ नये पुराविदों ने तो इस देश की सभ्यता को लाखों वर्ष की पुरानी सिद्ध करने के लिए पुस्तकें तक लिख डाली हैं।

यहां के अनेक महल, मन्दिर, स्तूप और गढ़ आदि तो काल