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अतीत स्मृति
 


पूर्व बौद्धों के कितने ही स्तूप, विहार और चैत्य आदि थे। वे सब, एक ऊँची जगह, पहाड़ों पर थे। खोदने पर इन इमारतो में आग लग कर गिर जाने के चिह्न पाये गये है। ईसा की पांचवीं सदी में तक्षशिला और उसके आस पास के प्रान्त पर हूणों के धावे हुए थे। उन्होंने उस प्रान्त का विध्वंस-साधन किया था। बहुत सम्भव है, उन्होंने जलाकर इन इमारतों का नाश किया हो।

खोदने से इन खँडहरो में एक बहुत बड़े स्तूप का खण्डांश निकला है। छोटे छोटे स्तूप तो बहुत से निकले है। यहीं, स्तूपों के पास, बौद्ध भिक्षुओं के रहने की जगह भी थी। एक विस्तृत विहार था, जिसमें पचास साठ भिक्षुओं के रहने के लिए अलग अलग कमरे थे। यह दो मंजिला था।

खोदने से, जौलियाँ में, बुद्ध और बोधिसत्वों की बहुत सी मूर्तियां मिली हैं। कई मूर्तियां अखण्डित हैं और बड़ी विशाल हैं। स्तूपों के चारों ओर, कई कतारो मे, मिट्टी और चूने के पलस्तर की और भी सैकड़ों मूर्तियां पाई गई हैं। वे बुद्ध बोधिसत्वों भिक्षुओं, उपासिकाओं, देवों और यक्षों आदि की हैं। इन सब को वेश-भूषा आदि देखकर उस समय के वनाच्छादन और सामाजिक व्यवस्था का सच्चा हाल मालूम हो सकता है। पुरुषों के उणीष और अङ्ग-वस्त्र, स्त्रियों के सलूके और कर्ण-कुण्डल, तथा देवों और यक्षों के कुतूहल-जनक आकार-प्रकार और भावभंगियाँ बड़ी योग्यता से मूर्तियों में दिखाई गई हैं। उस समय के भारतवासियों ने जिन हूणों को म्लेच्छ-संज्ञा