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३-आदिम आर्य्य

बिलासपुर के श्रीयुक्त बी॰सी॰ मजूमदार, बी॰ए॰, अच्छे पुरातत्ववेत्ता है। उनके लेख विद्वता तथा गवेषणा-पूर्ण होते हैं। अगस्त १९१२ के "माडर्न रिव्यू" मे मजूमदार महाशय का एक लेख बड़े महत्व का निकला है। उसमें उन्होंने यह दिखाने की चेष्टा की है कि भारत के प्राचीन आर्य्य कहीं बाहर से नही आये थे, वे यहीं के निवासी थे और इसी देश के पूर्वी और दक्षिणी भागों से चल कर वे उत्तर-पश्चिमाञ्चल में जा बसे थे। अक्तूबर १९१२ के "माडर्न रिव्यू" में उनके इस कथन के कुछ अंश का खण्डन भी श्रीयुत रामचन्द्र के॰ प्रभू नाम के एक सज्जन ने किया है। लगभग सभी इतिहासकारों का मत है कि भारतीय आर्य्य कहीं बाहर से भारत मे आये। मजूमदार महाशय इस सिद्धान्त के विरोधी है। हम संक्षेप मे, उनकी उन युक्तियों को नीचे लिखते हैं जिनके आधार पर उन्होंने अपना पूर्वोक्त मत स्थिर किया है।

वैदिक मन्त्रों से इस बात का बिलकुल पता नहीं लगता कि उनके रचयिता आर्य्य भारतवर्ष मे कही बाहर से आये। अध्यापक मेकडानल ने तो यहाँ तक लिखा है कि वेदो से यह बात प्रकट ही नहीं होती कि भारतीय आर्य्यों को अन्य किसी देश का कुछ भी पता था। आदिम मनुष्य-जातियों में एक यह विशेषता थी कि वे अपने प्राचीन इतिहास को न भूलती थीं। वे उसकी