पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आर्य्यो का आदिम-स्थान
३७
 


आर्य्यो का आदिम स्थान उत्तरी ध्रुव मे निश्चय किया है, उसका कुछ आभास हम यहाँ पर देना चाहते है। परन्तु उत्तरी ध्रुव में रहने का नाम सुनते ही आश्चर्य होता है और इस बात पर विश्वास नहीं आता। जो प्रदेश सर्वथा हिमाच्छन्न, जहाँ जल और थल में कुछ भी भेद नही, सभी हिममय; जहाँ डाक्टर नानसेन के दृढ़ से दृढ़ जहाज़ बर्फ की चट्टानों से टकरा कर टूटने से बचे; वहाँ वास! यह बिलकुल ही असम्भव जान पड़ता है; परन्तु यदि मेरु-प्रदेश में आर्य्यो का वास न माना जाय तो वेदों के अनेक मन्त्रों का ठीक ठीक अर्थ ही नहीं लग सकता। अतएव आज कल के इस बर्फ से ढके हुए देश मे किसी समय आर्य्यो का निवास लाचार होकर मानना ही पड़ता है।

सूर्य्य की गति के हिसाब से पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निरक्ष-वृत्त से ६६ और ९० अंश के बीच का प्रदेश हिम-मण्डल कहलाता है। वह सदैव बर्फ़ से आच्छन्न रहता है। लापलैंड और साइबेरिया का कुछ भाग इसी मण्डल के अन्तर्गत है। इसमे प्रायः लाप जाति के मनुष्य वसते हैं। इस समय वहॉ जितना शीत पड़ता है, किसी समय, इससे भी अधिक पड़ता था। यहाँ तक कि बर्फ की नदियाॅ बड़े वेग से वह निकलती थीं और उनके प्रवाह में पड़ कर देश के देश उजाड़ होकर उनके नीचे दब जाते थे। इस हिम-प्रलय का प्रमाण वर्तमान हाथी का प्रपितामह ममोथ (Mammoth) नामक ऐरावत है। इस समय यह जीव पृथ्वी में नहीं रह गया। परन्तु साइवेरिया में इसके