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अतीत-स्मृति
 


करने के पहले भी हिन्दू लोग इन द्वीपों में प्राचीन काल से आते जाते थे, इस बात के बहुत से प्रमाण पाये जाते हैं। मृत्यु के बाद एक मास तक शव रखना बहुत पुरानी पद्धति है। बौद्ध धर्म के आविर्भाव होने के पहिले भी भारतवर्ष में इसका चलन था।

भारतवर्ष की भाषा (संस्कृत) बाली आदि द्वीपों में वहाँ की असभ्य भाषाओं के मेल से जिस प्रकार बदल गई है उसी प्रकार भारत के आचार-व्यवहार भी वहाँ परिवर्तित हो गये हैं। जब स्थान, काल और पात्र के भेद से भारतवर्ष ही के विभिन्न प्रदेशों में भिन्न भिन्न आचार-व्यवहार और भाषायें प्रचलित हैं तब यदि समुद्र-पार के द्वीपों की भाषा, आचार और व्यवहार भारत की भाषा, आचार, व्यवहार से कुछ कुछ मिन्न हो जायँ तो आश्चर्य ही क्या है? इस भिन्नता के होते भी भारतवर्षीय हिन्दुओ और बाली आदि द्वीपों के हिन्दुओ के आचार-व्यवहार और भाषा मे बहुत कुछ सादृश्य वर्तमान है। जो हो, इसमें सन्देह नहीं कि इन द्वीपों के हिन्दू भारत के प्राचीन हिन्दुओ के अध्यवसाय की कीर्ति-चिह्न-स्वरूप होकर अब भी उनकी गौरव-पताका फहरा रहे हैं।

[मई १९१९