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विक्रम-संवत्
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शाखा वालो ने ईसा की पहली शताब्दी में काठियावाड़ को अपने अधिकार में किया। धीरे धीरे इन लोगो ने उज्जैन को भी अपने अधीन कर लिया। इन्हे गुप्तवंशी राजो ने हरा कर उत्तर की ओर भगा दिया। अच्छा, तो इनके पराभवकर्ता तो गुप्त हुए। पहली शाखा के शकों का विनाश किसने साधन किया। क्या बिना किसी के निकाले ही वे इस देश से चले गये? अपना राज अपना अधिकार-क्या कोई यों ही छोड़ देता है? उनका पता पीछे से ऐतिहासिक लेखो से चलता क्यों नहीं? इसका क्या इसके सिवा और कोई उत्तर हो सकता है कि ईसा के ५७ वर्ष पहले विक्रमादित्य हो ने उन्हें नष्ट-विनष्ट करके इस देश से निकाल दिया? इसी विजय के कारण उसको शकारि-उपाधि मिली और संवत् भी इसी घटना की याद में उसने चलाया। मुल्तान के पास करूर वाला युद्ध इन्ही तक्षशिला और मथुरा के शको और विक्रमादित्य के मध्य हुआ था। इसके सिवा इसका अब और क्या प्रमाण चाहिए?

इस पर भी शायद कोई यह कहे कि यह सब सही है। पर कोई पुराना शिलालेख लाओ, कोई पुराना सिक्का लाओ, कोई पुराना ताम्रपत्र लाओ जिसमे विक्रम-संवत् का उल्लेख हो। तब हम आप की बात मानेंगे, अन्यथा नहीं। खुशी की बात है कि इस तरह का एक प्राचीन लेख भी मिला है। वह पेशावर के पास तख्तेवाही नामक स्थान में प्राप्त हुआ है। इसलिए उसी के नाम से वह प्रसिद्ध है। यह उत्कीर्ण लेख पार्थियन राना गुडूफर्स