पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११० :: अदल-बदल
 


में रहेंगे--मैं अपना कर्तव्य उनके प्रति पालन करती रहूंगी।'

'मेरा अभिप्राय यह है कि तलाक स्वीकार होने पर•••'

'हिन्दू स्त्री प्रदत्ता है। उसे तलाक स्वीकार करने का अधिकार नहीं है।'

'स्वीकार न करने पर भी कानूनन उसका सम्बन्ध पति से टूट जाएगा।'

'केवल शरीर-सम्बन्ध। परन्तु हिन्दू स्त्री का पति से केवल शरीर-सम्बन्ध ही नहीं है। लाखों करोड़ों-विधवाएं आज भी पति के मर जाने पर जीवनभर वैधव्य धारण कर उसीके नाम पर बैठी रहती हैं।'

'परन्तु यह तो अन्याय है विमलादेवी।'

'आप न्याय को कानून के तराजू पर तौलते हैं, इसलिए आपको यह अन्याय प्रतीत होता है। यदि इसे धर्म की तराजू पर तौला जाए तो यह तप है। और तप एक पुण्य है, और पुण्य कदापि अन्याय नहीं।'

'परन्तु यह पुण्य या तप जो कुछ भी आप समझें, पुरुष तो करते नहीं।'

'वे करें, उन्हें रोका किसने है?'

'परन्तु वे करते तो नहीं।'

'हां, नहीं करते। इसका कारण यह है कि उनमें तप करने की, पुण्य करने की शक्ति नष्ट हो गई है। वे बेचारे तप-पुण्य कर ही नहीं सकते। उन्होंने शरीरबल उपार्जन किया--हमने आध्यात्मिक। उन्होंने व्यावहारिक दुनिया को अपनाया, हमने अपनाया आदर्श और निष्ठा की दुनिया को।'

'परन्तु एक नवयुवती विधवा होने पर पति के नाम पर जीवन भर विधवा होकर बैठी रहे, इसे आप पुण्य कैसे कहती हैं?'

'इसे आप नहीं समझ सकते। इस प्रश्न का उत्तर कानून नहीं