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पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/१०९

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अदल-बदल :: १११
 


दे सकता।'

'तो आप उत्तर दीजिए।'

'उत्तर दे सकती हूं, पर आप चूंकि पुरुष हैं, समझ नहीं सकेंगे।'

'फिर भी आप कहिए।'

'पति-पत्नी सम्बन्ध में स्त्रियों और पुरुषों के आदर्शों में अन्तर है। पुरुष के लिए दाम्पत्य का अर्थ है उपभोग।'

'और स्त्री के लिए?

'संयम! और यह नैसर्गिक है, कृत्रिम नहीं। आप कानून, पुरुषों के लिए उनकी सम्पत्ति के लिए बना सकते हैं, और उन्हें लाभ पहुंचा सकते हैं। परन्तु स्त्रियों के लिए नहीं। कानून का अर्थ है--शान्तिपूर्वक उपभोग करो। लेकिन स्त्री पर कानून का नहीं--धर्म का शासन है। धर्म कहता है--संयम से पहले अपने को वश में करो--फिर संसार को।'

'क्या स्त्रियां वैधव्य से और खराब पतियों से दुःख नहीं पातीं?'

'पाती हैं, पुरुष भी खराब स्त्रियों से दुःख पाते हैं, सुख, दुःख मनुष्य की दुबुद्धि का भोग है। उनसे कैसे बचा जा सकता है?'

'परन्तु कानून तो जीवन में एक व्यवस्था कायम करता है।'

'सो करे।'

'तो कानून की दृष्टि में तलाक के बाद आप डा० कृष्णगोपाल की पत्नी न रहेंगी।'

'समझ गई। परन्तु मैं भी कह चुकी हूं कि मैं उनकी पत्नी ही रहूंगी। हां, एक बात है। अब तक मैंने पति के द्वारा दिया गया दुःख भोगा और अब कानून के द्वारा दुःख भोगूंगी।'

'आप दूसरा विवाह करके सुखी हो सकती हैं।'

'परन्तु मुझे पुरुषों के इस सुख पर ईर्ष्या नहीं है, दया है।'

'खैर, तो आपका और आपके पति का पति-पत्नी सम्बन्ध