पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/१३९

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मरम्मत :: १४१
 

'अरे जब तक तुम जैसे अपवित्र लुच्चे युवक हैं स्त्रियां कभी निर्भय नहीं हो सकतीं। कहो---क्या हमें संसार में हंसने-बोलने, घूमने-फिरने, आमोद-प्रमोद करने की जगह ही नहीं, हम चोर की भांति लुक-छिपकर, पापी की भांति मुंह ढंककर दुनिया में जिएं। और यदि ज़रा भी आगे बढ़ें तो तुम जैसे लफंगे उसका गलत अर्थ लगाकर अपनी वासनाएं प्रकट करें? याद रक्खो, स्त्रियों को निर्भय रहने के लिए तुम जैसे खतरनाक नर-पशुओं का न रहना ही अच्छा है। जानते हो---जब मनुष्यों ने वनों को साफ करके सभ्यता विस्तारित की थी, तब वनचर खूंखार पशुओं का सर्वनाश कर दिया था---उनके रहते वे निर्भय नहीं रह सकते थे। समूची सभ्यता वह है जहां स्त्रियां निर्भय हैं-वनचर बूंखार जानवरों के रहते मनुष्य निर्भय नहीं रह सकते थे और नगरचर गुण्डों के रहते स्त्रियां निर्भय नहीं रह सकतीं। इसलिए मैं तुम्हारे साथ वही सलूक किया चाहती हूं, जो मनुष्य ने वनचर पशुओं के साथ किया था।'

इतना कहकर रजनी ने एकाएक बड़ा-सा छुरा निकाल लिया।

छुरे को देखते ही दिलीप की घिग्घी बंध गई। वह न चिल्ला सकता था, न भाग सकता था, उसकी शक्ति तो जैसे मर गई थी। उसने रजनी के पैरों में सिर डालकर मुर्दे के से स्वर में कहा---'क्षमा कीजिए देवी, आप इस बार इस पशु को क्षमा कीजिए।'

रजनी ने धीमे गम्भीर स्वर में कहा---'क्षमा मैं तुम्हें कर सकती हूं। परन्तु तुम एक खतरनाक जानवर हो, जिन्दा रहोंगे तो जाने कितनी बहिनों को खतरे में डालोगे।'

'मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं जीवन में प्रत्येक स्त्री को बहिन के समान समझूंगा।'

'तुम्हारी प्रतिज्ञा पर मुझे विश्वास नहीं।'