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पाप:: १६९
 

पाप होगा?

'कौन प्रायश्चित?
'अब सो रहो, सुबह कहूंगा।
'अच्छी बात है, एक अनुष्ठान जोड़ देना होगा।'
'वह क्या ?
'तीन वर्ष तक हम दोनों पृथक् कमरे में शयन करेंगे।'
'अच्छी बात है
'कभी स्पर्श न करेंगे।'
'अच्छा।
'यह बात कभी किसी पर किसी भांति प्रकट न की जाएगी।

यदि प्रकट हो गई, तो उसी दिन से शुरू करके फिर तीन वर्ष गिने जाएंगे।'

'अच्छा, कुमुद यही होगा।'
'हम लोग भूमि पर सोएंगे, एक वक्त भोजन करेंगे।'
'मंजूर है।'

'तब स्वामी, आज के मेरे इस अप्रिय व्यवहार पर दया कीजिए। जाइए, बाहर आपके शयन की उचित व्यवस्था हो जाएगी।'

राजेश्वर चुचाप चले गए।

होली का दिन था। कुमुद रसोई बना रही थी। एक थाल को आंचल से छिपाए किशोरी वहां पहुंच गई। वह बहूमूल्य गुलाबी साड़ी पहने थी। कुमुद के सामने वह खड़ी-खड़ी हंसने लगी। कुमुद ने उसे भोजन का निमन्त्रण दिया था। इतनी जल्द उसे आया देखकर उसने कहा-'इतनी भूखी हो ? अभी से आ गईं। अभी तो कुछ बना भी नहीं।'