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४८::अदल-बदल
 

'वही गधेपन की हांकते हो। कोडबिल की यह मंशा नहीं है कि स्त्रियां मर्द हो जाएं, उनको दाढ़ी-मूछे निकल आएं या वे बच्चे न पैदा करें। यह तो कुदरत का प्रश्न है, इसमें कौन दखल दे सकता है। कोडबिल का मंशा सिर्फ यह है कि समाज में जो पुरुष उनके मालिक बनते हैं, उन्हें जबरदस्ती अपने साथ बांध रखते हैं, उनके ये मालिकाना अख्तियार खत्म हो जाएं। स्त्रियां समाज में पुरुषों के समान ही अधिकार सम्पन्न हो जाएं।'

'लेकिन यह हो कैसे सकता है ?' तरुण युवक ने जिसका नाम हरवंशलाल था-धुएं का बादल बनाते हुए कहा।

'क्यों नहीं हो सकता?' डाक्टर ने ज़रा तेज होकर कहा।

युवक हरवंशलाल ने कहा- 'जनाब, गुस्सा करने की जरूरत नहीं। बातचीत कीजिए। समझिए, समझाइए। पहली बात तो यह कि स्त्रियों का समाज में समान अधिकार हो ही नहीं सकता। उनकी शारीरिक बनावट, मानसिक धरातल और सामाजिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे स्वतन्त्र रह सकें। उन्हें पुरुषों के संर- क्षण में रहना ही होगा। उसमें बुराई भी क्या है, समाज में घर के बाहर बहुत भेदिये रहते हैं, उनसे उनकी हत्या होगी। स्त्रियों की हमारे घरों में एक मर्यादा है, उन्हें हम अपने से कमजोर, नीच या दलित नहीं समझते। हम उन्हें अपनी अपेक्षा अधिक पवित्र, पूज्य और सम्माननीय समझते हैं। युग-युग से पुरुषों ने स्त्रियों की मान-मर्यादा के लिए अपने खून की नदियां बहाई हैं, वह इसलिए कि समाज में पुरुष स्त्री का संरक्षक है। अब यदि वह समाज में बराबर का दर्जा पा जाएगी-तो पुरुषों की सारी सहानुभूति और संरक्षण खो बैठेगी। तथा उनकी दशा अत्यन्त दयनीय हो जाएगी।'

'खाक दयनीय हो जाएगी।' मायादेवी ने उत्तेजित होकर कहा-'आप यहां चाहते है कि हम स्त्रियां आप पुरुषों की पैर की