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अदल-बदल :: ७५
 

उसका सबसे बड़ा दुर्भाग्य समझा जाता है।

डाक्टर ने चेहरे पर शोक-मुद्रा लाकर कहा---'निस्संदेह यह बड़े ही दुःख की बात है। यह उनका दुर्भाग्य नहीं, हमारी सारी जाति का दुर्भाग्य है।'

मायादेवी ने कहा---'अभी तो मैंने यह उनके पति के घर की बात कही है, पिता के घर का तो हाल सुनिए। ...यदि विधवा छोटी अवस्था की हुई तो वह प्रायः पिता के घर ही अधिक रहती है, यदि ससुराल वाले शरीफ हुए तो। माता-पिता उस पर दया और स्नेह तो अवश्य करते हैं, परन्तु उसे देखकर दुखी रहते हैं। किन्तु कठिनाई तो तब आती है जब वह अधिक आयु की हो जाती है। माता-पिता, सास-ससुर मर जाते हैं। ससुराल में देवर-देवरानियों का और पीहर में भाई-भावजों का अकण्टक राज्य रहता है। तब वह सर्वत्र एक भार, एक पराई चीज, एक घृणा और तिरस्कार, क्रोध और अपमान की पात्री भर रह जाती है। उसके दुःख-दर्द को कोई न समझता है, न उसकी परवाह करता है। संसार के सब सुखों और मानवीय अधिकारों से वह वंचित है।'

डाक्टर ने सहानुभूति-सूचक स्वर में कहा---'निस्संदेह माया देवी, ऐसी अवस्था में यह बात गम्भीरता से सोचने योग्य है कि ऐसे कौन-कौन उपाय काम में लाए जाएं जिनसे स्त्रियों की यह असहायावस्था दूर हो।'

सेठजी अब तक चुप बैठे थे। उन्होंने कहा---'डाक्टर साहेब, आपने ऐसे कुछ उपाय सोचे हैं?'

'क्यों नहीं, मैं तो सदैव से इन विषयों में दिलचस्पी रखता हूं। फिर मायादेवी की धार्मिक बातें भी भुलाने के योग्य नहीं हैं। मेरी राय में राहत मिलने के कुछ उपाय हैं। पहला तो यह कि--- विवाह के समय में माता-पिता अधिक-से-अधिक दहेज दें। और दहेज की शकल में हो---गहना, कपड़ा। बर्तन आदि नहीं। और