अब तक लोगों का यही खयाल था कि पशु मनुष्यों की भाषा नहीं बोल सकते। परन्तु योरप और अमेरिका के प्राणि-तत्त्व- वेत्ताओं ने अपने अनुभवों द्वारा इस विचार को असत्य सिद्ध कर दिया है। उन्होंने दिखला दिया है कि शिक्षा पाने पर पशु मनुष्यों की बोली थोड़ी-बहुत बोल सकते हैं। प्राणि-विद्या के जिन पंडितों ने इस विषय की विशेष आलोचना की है, उनमें अध्यापक वेल, वूसलर, किनेमैन, कार्नेस तथा गार्नर मुख्य हैं। इनमें से केवल प्रथम दो प्राणि-विद्या-विशारदों के अनुभवों का संक्षिप्त वृत्तांत हम सुनाते हैं। पहले वेल साहब के अनुभवों का सारांश सुनिए---
अध्यापक वेल के पिता चिकित्सक थे। वह तोतलेपन का बहुत
अच्छा इलाज करते थे। अतएव सैकड़ों तोतले अपनी चिकित्सा
कराने के लिये उनके पास आया करते थे। उन्हीं तोतलों का मुँह देखते-देखते एक बार अध्यापक खेल के मन में यह बात आई कि क्या कुत्तों के मुँह से भी मानवीय शब्द कहलाए जा सकते हैं। इस बात की परीक्षा करने के लिये उन्होंने एक कुत्ता पाला, और उसके मुँह से शब्द कहलवाने की कोशिश करने लगे। कुछ दिनों तक परिश्रम करने के बाद वह कुत्ता अँगरेजी का 'मामा'(Mamma=मा)-शब्द उच्चारण करने लगा। कुछ दिनों बाद वह 'ग्रांड मामा' (Grand Mamma=दादी)