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विद्वान् घोड़े

लिखकर उसकी सचाई का प्रमाण दिया जायगा। सिद्धांत पीछे से निकलते रहेंगे।

जर्मनी में एक महाशय रहते हैं। उनका नाम है हर वॉन आस्टिन। उन्होंने एक घोड़ा पाला और उसका नाम रक्खा हंस। इस बात को कई वर्ष हुए। उन्होंने उसे अन्यान्य बातों के सिवा जोड़, बाक़ी, गुणा आदि के प्रश्न हल करना भी सिखाया। इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध किया कि हंस में सोचने, समझने और याद रखने की शक्तियाँ विद्यमान हैं। इस घोड़े के गणित-ज्ञान की परीक्षा डॉक्टर फस्ट नाम के एक विद्वान् ने की। पर उसकी राय में इस घोड़े के संबंध की सारी बातें आस्टिन की चालाकी का कारण मालूम हुईं। अतएव उसने अपनी जाँच का फल बड़े ही प्रतिकूल शब्दों में प्रकाशित किया। आस्टिन ने हर अंक के लिये अपने घोड़े की टाप के ठोंकों की संख्या नियत कर दी थी।

उदाहरणार्थ—१ के लिये एक ठोंका, २ के लिये दो, ३ के लिये तीन। इसी तरह और भी समझिए। जब उस घोड़े के सामने बोर्ड पर जोड़ने, घटाने या गुणा करने के लिये कुछ संख्याएँ लिख दी जाती, तब वह पूछे गए प्रश्न का उत्तर अपनी टापों के ठोंकों से देता। इस पर डॉक्टर फस्ट ने आस्टिन पर यह इलजाम लगाया कि ज्यों ही घोड़ा उत्तर-सूचक अंकों को बतानेवाले ठोंकों को अंतिम संख्या पर पहुँचता है, त्यों ही आस्टिन साहब कुछ इशारा कर देते हैं। उस इशारे को पाते