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विद्वान् घोड़े


सिद्ध करने की चेष्टा करूँगा। यह कहकर वह अपने घर लौट आए।

घर आकर काल ने दो अरबी घोड़े खरीदे। एक का नाम उन्होंने मुहम्मद रक्खा, दूसरे का ज़रिफ़। यह बात १९०८ की है। इसी सन् के नवंबर की दूसरी तारीख़ को उन्होंने इन घोड़ों को सिखाना शुरू किया। शिक्षा का ढंग उन्होंने प्रायः वही रक्खा, जो आस्टिन का था। बहुत ही थोड़ा फेर-फार करके उस प्रणाली को कुछ और सरल अवश्य कर दिया। उन्होंने भी आस्टिन ही की तरह प्रत्येक अंक के लिये घोड़ों के खुरों के ठोंकों की संख्या नियत कर दी। इकाई के अंकों के लिये वह दाहिने पैर के खुर से और दहाई के अंकों के लिए बाएँ से काम लेने लगे। तीन ही दिन में, बोर्ड पर लिखे गए, १,२,३,—ये तीन अंक—घोड़े सीख गए, और उन अंकों पर मुँह रखकर पूछे गए अंक भी वे बताने लगे। दस दिन बाद मुहम्मद ४ तक गिनने लगा। इसके बाद क्राल ने उन दोनो को इकाई और दहाई का भेद सिखाया। तब वे अपने दाहने बाएँ पैरों के खुरों से उनको बताने लगे। १२ दिन बाद मुहम्मद जोड़ और चाकी लगाने लगा। उसे ऐसे सवाल दिए जाने लगे—

१+३, २+५ इत्यादि

५—३, ४—२ इत्यादि

१८ नवंबर को क्राल साहब ने गुणा और भाग सिखाया, और २१ को कसर और कसरवाले अंकों का जोड़ आदि।