संयुक्त राज्य, अमेरिका, के रहनेवाले अध्यापक गार्नर ने अपनी प्रायः सारी की सारी उम्र बंदरों की भाषा का ज्ञान-संपादन करने में खर्च कर डाली। जिस समय आप आफ्रिका के जंगलों में बंदरों की बोली सीखने का प्रयत्न कर रहे थे, उस समय कुमारी सिमोल्टन नामक एक अमेरिकन महिला ने वहीं जाकर आपसे भेंट की। उस समय अध्यापक महाशय को अपने उद्योग में बहुत कुछ सफलता हो गई थी। वह मज़े में बंदरों के साथ बातचीत कर सकते थे। पीछे से तो आप बंदरों की बोली बोलने और समझने में पूर्ण पंडित हो गए; और एक बहुत बड़ी पुस्तक भी लिख डाली।
गार्नर साहब का पूरा नाम है डॉक्टर रिचर्ट एल्० गार्नर। जब से आपको बंदरों की भाषा सीखने की इच्छा हुई, तब से आप अपना सब काम छोड़कर उसी के पीछे पड़ गए। इसीलिये आफ्रिका के जंगलों में वर्षों घूमते रहे, मनुष्यों का संपर्क छोड़कर आप बंदरों के साथी बने। गोरीला और चिंपैंजी नाम के बंदर बड़े भयानक होते हैं। उनके साथ रहना अपने प्राणों को संकट में डालना है। फिर भी आप अपने काम में लगे ही रहे। उद्योग और अध्यवसाय से क्या नहीं होता। अंत में आपका मनोरथ पूर्ण हुआ, और आप बंदरों की भाषा सीख गए। अपने काम में सफलता प्राप्त कर लेने के बाद आप परलोकांतरित हुए।