जब से आपको बंदरों की भाषा सीखने की इच्छा हुई, तब से आप उनकी आवाज़ पर ध्यान देने लगे। वे लोग आपस में जैसी आवाज़ करते थे, उसका ठीक-ठीक उच्चारण आप लिख लेते थे। फिर आप दूसरे बंदरों के पास जाकर उन्हीं शब्दों का उच्चारण किया करते थे। उसे सुनकर बंदर जो कुछ करते थे, उसे भी आप लिख लेते थे। इस तरह करते-करते आपने यह निश्चय किया कि बंदरों की भी भाषा है, और वे एक दूसरे की बातें समझ भी सकते हैं।
इसके बाद आपने दो बंदरों को अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया। फिर आपने एक बंदर की आवाज़ को ग्रामोफ़ोन के रिकार्ड में भर लिया। तब आप दूसरे बंदर के कमरे में गए। वहाँ आपने ग्रामोफ़ोन पर उसी रिकार्ड को लगा दिया। उसे सुनकर वह बंदर अस्थिर हो उठा, और चारो तरफ़ अपने साथी को खोजने लगा। फिर इस बंदर की आवाज भरकर आए पहले बंदर के पास ले गए। उसे सुनकर वह और भी अधिक बोलने लगा। चोंगे में हाथ डालकर अपने साथी को ढूढ़ने भी लगा।
जब कोई बंदर किसी दूसरे बंदर को युद्ध के लिये ललकारता है, तब वह एक विशेष प्रकार की आवाज़ करता है। गार्नर साहब ने उसको भी भरकर एक दूसरे बंदर को सुनाया। ललकार सुनते ही वह बंदर क्रुद्ध हो उठा, और वह भी वैसा ही शब्द करने तथा अपने प्रतिद्वंद्वी को ढूँढ़ने लगा।