तीन हज़ार मील की दूरी, बात कहते, ये ख़बरें तय कर डालती हैं। जब ऊँचे ऊँचे पहाड़ लाँघने में इनको कोई कठिनता नहीं मालूम होती, तब साफ-सुथरे आकाश-मार्ग को तय करने में क्यों मालूम होने लगी? हाँ, मामला दूर का है। इसलिये तार भेजने की बिजली की ताक़त ख़ूब अधिक दरकार होगी। वह अमेरिका के नियागरा-प्रपात से प्राप्त की जा सकती है। बस, फिर ५,००,००,००० मील दूर, आकाश में, २०० शब्द फ़ी मिनट के हिसाब से खबरें भेजी जाने में कुछ भी देरी न लगेगी!
अजी साहब, आपकी ख़बरें मंगल-ग्रहवाले पढ़ेंगे किस तरह? और वहाँ कोई रहता भी है? इन बातों का पता लगाना औरों का काम है, मारकोनी साहब का नहीं। वह सिर्फ़ ख़बर भेजने का बंदोबस्त कर देंगे। मंगल में आदमियों को खोजकर उन्हें पृथ्वी की खबरों का जवाब देने लायक़ बनाना औरों का काम है। यह काम भी लोग धड़ाके से कर रहे हैं।
मंगल के जो छायाचित्र लिए गए हैं, उनसे प्रकट होता है कि इस ग्रह में कितनी ही नहरें हैं। वे खूब लंबी, चौड़ी और सीधी हैं। वे प्राकृतिक नहीं हैं, आप-ही-आप नहीं बन गईं। उनके आकार को देखने ही से मालूम होता है कि व आदमियों की बनाई हुई हैं, और बहुत होशियार आदमियों ने उन्हें बनाया होगा। हम लोगों से तो वे जरूर ही अधिक होशियार होंगे। कला-कौशल में वे हमसे बहुत बढ़े चढ़े होंगे। ऐसे सभ्य, शिक्षित और कला-कुशल आदमी हमारी खबरें न पढ़ सकेंगे! हम लोग अँगरेज़ी