सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१२९
मंगल ग्रह तक तार

में ख़बरें भेजेंगे। हमसे सैंकड़ोंगुना अधिक विद्वान् और विज्ञान-निधान होने के कारण वे धीरे-धीरे, वहीं बैठे-बैठे, हमारी अँगरेज़ी सीख लेंगे। और, फिर, अपनी भाषा हमें सिखला देंगे। अँगरेज़ी की मदद से वे यह काम बहुत आसानी से कर सकेंगे।

जितनी आकर्षण-शक्ति पृथ्वी में है, उसकी एक ही तिहाई मंगल में है। इससे यहाँ के विज्ञानियों ने हिसाब लगाया है कि मंगल के आदमी कुंभकर्ण के भी चचा होंगे। वे बहुत ही भीमकाय और विशाल बली होंगे। मान लीजिए, पृथ्वी के आदमियों की अपेक्षा मंगलवाले तिगुने बड़े हैं। अब यदि वे पृथ्वी पर किसी तरह आ जायँ, तो उनका वज़न यहाँ के आदमियों की अपेक्षा बीसगुना अधिक हो! एक साहब की राय है कि मंगली मनुष्यों की छाती बहुत चौड़ी होगी। श्वासोच्छ्वास में मनों हवा पाने और बाहर निकालने के लिये उनके फेफड़े मछलियों के फेफड़ों के सदृश बड़े-बड़े होगे। उनकी नाक लंबी और हाथ नीचे पैरों तक लंबे होंगे।

दो-एक आदमियों ने अध्यात्म-विद्या के बल से पात्रों को आध्यात्मिक नींद में करके उनसे कहा––"पृथ्वी पर नहीं; मंगल पर हो। बतलाओ तो सही, तुम क्या देख रहे हो?" उन्होंने कहा––"हम विलक्षण प्रकार के भीम भूधराकार प्राणी देख रहे हैं। उनके पंख हैं। उनकी गर्दन बहुत लंबी है। वे मज़े में जहाँ चाहते हैं, उड़ते फिरते हैं। वे भी आदमी ही हैं। फ़र्क़ इतना ही है कि डील-डौल में वे बहुत बड़े हैं।"