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अद्भुत आलाप

इस कमरे के बराबर एक और भी कमरा था। उसमें मेहमान ठहराए जाते थे। उसी में कचहरी थी। इससे भी बढ़कर एक गोल कमरा था। उसके फ़र्श में संगमरमर और संगमूसा की पच्चीकारी का काम था। दीवारों पर उत्तमोत्तम चित्र अंकित थे। इस कमरे में पुराने इतिहास और राज्य-संबंधी काग़ज़ात रहते थे। यह कमरा बीच से लकड़ी के पर्दो से दो भागों में बँटा हुआ था। दूसरे भाग में मेहमान लोग भोजन करते थे।

इसके बाद देखनेवाला यदि दक्षिण की तरफ़ मुड़ता, तो एक और बहुत बड़ा सजा हुआ कमरा मिलता। उसमें सोने का प्रबंध था। कोचें बिछी हुई थीं। उन पर तीन-तीन फ़ीट ऊँचे रेशमी गद्द पड़े रहते थे। इसी कमरे में, दीवार के किनारे-किनारे, अलमारियाँ लगी थीं। उनमें बहुमूल्य रत्न और प्राचीन काल की अन्यान्य आश्चर्य-जनक चीज़ें रक्खी रहती थीं।

इस मकान के चारो तरफ़ एक बड़ा ही मनोहारी बाग़ीचा था। जगह-जगह पर फ़व्वारे अपने सलिल-सीकर बरसाते थे। उनकी बूँदें बिल्लौर के समान चमकती हुई भूमि पर गिर-गिर-कर बड़ा ही मधुर शब्द करती थीं। फ़व्वारों के किनारे-किनारे माधवी-लताएँ कलियों से परिपूर्ण शरद् ऋतु की चाँदनी का आनंद देती थीं। फ़व्वारों के कारण दूर-दूर तक की वायु शीतल रहती थी। जहाँ-तहाँ सघन वृक्षों की कुंजें भी थीं।

आगे चलकर गर्मियों में रहने के लिये एक मकान था, जिसे हम मदन-विलास कह सकते हैं। पाठक, कृपा करके