वैसा ही निकाल लिया जाता है। कहने की ज़रूरत नहीं, यह बिंदु-वर्णावली अँगरेज़ी-वर्णो की ज्ञापक है। इस बिंदु-मालिका में जितने बिंदु बड़े-बड़े हैं, वे सब काग़ज पर उभड़े हुए हैं। उन पर उँगली रखते ही अंधे जान जाते हैं कि ये किस अक्षर या शब्द के ज्ञापक हैं। प्रत्येक अक्षर के ज्ञापक इसी बिंदु-मालिका को पास-पास रखने से शब्द बन जाते हैं। प्रत्येक वर्णों के बीच कुछ कम, और प्रत्येक शब्द के बीच कुछ अधिक, जगह छोड़ दी जाती है, जिसमें एक शब्द दूसरे से मिल न जाय। वैज्ञानिक विषयों की इबारत लिखने में कुछ कठिनता होती है, क्योंकि टेढ़ी-मेढ़ी संज्ञाएँ, रेखाएँ और शकलें इस बिंदु-मालिका के द्वारा नहीं बनाई जा सकतीं। परंतु अंधों के लिये विज्ञानवेत्ता या शास्त्री होने को अभी वैसी ज़रूरत भी नहीं है। अभी तो उनके लिये ऐसी किताबों की ज़रूरत है, जिनसे उनका मनोरंजन हो, और जिन्हें पढ़कर वे अपना समय अच्छी तरह काट सकें, और साथ-ही-साथ अपने ज्ञान की भी कुछ वृद्धि कर सकें। इस बिंदु-वर्णावली में इबारत लिखने के लिये एक ख़ास क़िस्म का ढाँचा दरकार होता है। उसी पर काग़ज लगा दिया जाता है। अंधे उसे बड़ी सफ़ाई से लिख लेते हैं। कितनी ही पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ इस वर्णावली में किताबें लिख-लिखकर अंधों को नज़र करती हैं।
ब्रेली की बनाई हुई इस नई बिंदु-माला का प्रचार इंगलैंड में हुए अभी बहुत दिन नहीं हुए। १८७२ ईस्वी में डॉक्टर आरमिटेज