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अंध-लिपि


नाम के एक विद्वान् ने इसका पहलेपहल प्रचार किया। परंतु इसका अब इतना प्रचार हो गया है कि इसकी बदौलत आजकल हजारों अंधे वहाँ शिक्षा पा रहे हैं। अंधों के लिये कितने ही स्कूल खुल गए हैं। यही नहीं, किंतु एक पुस्तकालय भी है। उसे कुमारी पार्था आरनल्ड-नामक एक जन्मांध स्त्री ने, कुमारी हाउडन-नामक एक अन्य स्त्री की सहायता से, स्थापित किया था। इसकी स्थापना हुए लगभग २५ वर्ष हुए। अब यह लंदन के वेज़वाटर-नामक मुहल्ले में है। इस पुस्तकालय का वर्णन नारो अलेगजांडर नाम की एक स्त्री ने, एक अँगरेज़ी सामयिक पुस्तक में, बड़ी ही मनोरंजक रीति से किया है। इस पुस्तकालय की सरपरस्त इंगलैंड के राजकुल की एक महिला महोदया हैं। इसमें जो पुस्तकें हैं, वे अंधों को पढ़ने के लिये दी जाती हैं।

अँगरेज़ी की जो पुस्तकें अंधों को लिये तैयार की जाती हैं, उन्हें पहले आँखवाले आदमी को अंधों की लिपि में नक़ल करना पड़ता है। इसके बाद उनकी जितनी कापियाँ दरकार होती हैं, उतनी अंधे कर लेते हैं। पहली कापी आँखवाले किसी आदमी को ज़रूर करनी पड़ती है। सुनते हैं, अंधों पर कृपा करके जो लोग इस तरह की पुस्तकें नक़ल करते हैं, उनको यह काम बुरा नहीं मालूम होता। वे इसे बड़े चाव से करते हैं। ज़रा अभ्यास भर उनको हो जाना चाहिए। फिर अंध-लिपि में पुस्तकें नक़ल करने में उनका जी नहीं ऊबता। उससे उलटा उनका मनोरंजन होता है।