तारीख़ को वह मनुष्य अन्यत्र नहीं पहुँच सकता! इस पुस्तक की सैकड़ों आवृत्तियाँ छप चुकी हैं। परंतु तब तक उसके प्रकाशकों में से किसी का भी ध्यान इस ग़लती की तरफ़ नहीं गया। इस पुस्तक को लाखों आदमियों ने पढ़ा होगा। परंतु, संभव है, किसी पढ़ने वाले को भी यह ग़लती न खटकी हो। खटकी एक अंधे को!
अंधों को शिक्षा देना बड़े पुण्य का काम है। क्या कभी वह दिन भी आवेगा, जब इस देश के अंधों को भी पढ़ाने-लिखाने का यथेष्ट प्रबंध होगा?
दिसंबर, १९०६
पढ़े-लिखे एतद्देशीय लोगों का भूत-प्रेतों के अस्तित्व पर बहुत कम विश्वास है। अँगरेज़ों को तो कुछ पूछिए ही नहीं। वे तो इस तरह की बातों को बिलकुल ही मिथ्या समझते हैं। परंतु एक असल अंगरेज़-बहादुर को—कम असल को भी नहीं—एक भूत ने बेतरह छकाया—उनका कलेजा दहला दिया। भूत ने उन पर एक प्रकार दया ही की, नहीं तो साहब बहादुर इंगलैंड लौटकर अपनी कहानी कहने को जीते ही न रहते। आप हिंदोस्तान की एक पल्टन में कर्नल थे। कोई ऐसे-वैसे डरपोक आदमी भी न थे। आप पर बीती हुई बातें आपके एक मित्र