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भयंकर भूत-लीला


ने आपकी तरफ से अँगरेज़ी की मासिक पुस्तक 'आकल्ट रिव्यू' में प्रकाशित की हैं। कर्नल साहब ने उन बातों की सचाई की सर्टिफ़िकेट दी है। अब आपकी कहानी आप ही से सुनिए—

जिस अजीब घटना का मैं ज़िक्र करने जाता हूँ, उसे हुए कोई १६ वर्ष हुए। उस समय मैं हिंदोस्तान में था। मैं अपना नाम नहीं लेना चाहता, क्योंकि हिंदोस्तान में मुझे बहुत आदमी जानते हैं। नाम लेने से वे मुझे झट पहचान लेंगे। मैं एफ दफ़े शिकार के लिये अपनी छावनी से दूर एक गाँव को गया। साथ सिर्फ़ दो आदमी थे—मेरा वेहरा और मेरा ख़ानसामा। प्रायः दिन-भर मैं घोड़े की पीठ पर रहा, शाम को मैं एक गाँव के पास आया। मैं ख़ाक में डूबा हुआ था। भूखा भी बहुत था। थका भी बहुत था। यह गाँव रास्ते से ज़रा हटकर था, और कपास के खेतों के बीच में बसा हुआ था।

एक क़ुदरती तालाब वहीं पर था। उसी के किनारे मैंने डेरा डाला। यह तालाब गाँव के पास ही था। तालाब के किनारे एक बहुत बड़ा छायादार बरगद का पेढ़ था। उसी के नीचे मैंने रात काटने का विचार किया। जो कुछ सामग्री वहाँ मिल सकी, उसी से मरे 'नेटिव' नौकरों ने मेरे लिये खाना बनाने की तैयारी की। वे लोग मेरे लिये खाना बनाने में लगे, ओर मैं यह देखने के लिये कि पास-पड़ोस में क्या है, एक दोरा लगाने निकला। चलते ही मुझे एक फ़क़ीर देख पड़ा। ये लोग हिंदोस्तान के सब हिस्सों में अधिकता से पाए जाते हैं। इसकी