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अद्भुत आलाप


जटाएँ बढ़ी हुई थीं। कमर में एक मैला लँगोटा था। सारे वदन में खाक लिपटी हुई थी। तालाब के दूसरे किनारे पर यह फ़कीर ध्यान में मग्न-सा था। इस तरह के धार्मिक विक्षिप्तों का लोग बड़ा आदर करते हैं। उनसे डरते भी हैं, क्योंकि इन लोगों में अलोकिक शक्तियाँ होती है। यह अघटित घटनाएँ दिखलाने में बड़े पटु होते हैं। ये लोग अपने मन को यहाँ तक अपने क़ाबू में कर लेते हैं कि जब चाहते हैं, समाधिस्थ हो जाते हैं। इस दशा में इनका शरीर तो जड़वते पृथ्वी पर पड़ा रह जाता है, पर आत्मा इनकी आकाश में यथेष्ट भ्रमण किया करती है। जब मैं इस बुड्ढे फकीर के पास होकर निकला, तब इसने अपना ध्यान भंग करके मेरी तरफ़ नजर उठाई। इसने मुझे सलाम किया, और मुझसे यह प्रार्थना की कि तुम इस तालाब का पानी न तो पीना और न छूना। पानी को हाथ भी न लगाना, नहीं तो कहीं कोई आफ़त न तुम पर आ जाय।

मैं समझा कि इसमें इनका कुछ स्वार्थ है। यह भी मैंने अपने मन में कहा कि यह फक़ीर शायद मुझे कोई ऐसा ही वैसा आदमी समझता है। यह मुझे भला कहाँ गँवारा था। मैंने डपटकर कहा-"चुप रहो।" मैंने उससे यह भी कह दिया कि इस तालाब का पानी पीने से तुम क्या, कोई आदमी दुनिया भर में मुझे मना नहीं कर सकता।

मेरे नौकर फ़क़ीर की बातें सुनकर बेतरह डर गए। डरते और काँपते हुए मेरा बेहरा ताल़ाब से पानी निकाल लाया।