मैंने उससे खब नहाया; खूब रगड़-रगड़कर बदन धोया। इससे मेरे बदन की थकावट और गर्मी बहुत कुछ दूर हो गई। मैं
फिर तरोताज़ा हो गया। इसके बाद मैं तालाब की और उस झकोर की भी बात बिलकुल ही भूल गया। मगर कुछ देर में मैंने देखा कि बहुत-से देहाती, और मेरे दोनो नौकर भी, एक दूर के तालाब से पानी लाने दौड़े चले जा रहे हैं। तब मुझे फिर वे बातें याद आ गई। मैंने इस बात की तहक़ीक़ात की कि ये लोग इस पास के तालाब से पानी न लेकर उतनी दूर दूसरे तालाब से क्यों पानी लाने जाते हैं। इस पर मुझे मालूम हुआ कि एक आदमी ने अपनी स्त्री को मार डाला था, और मारकर खुद भी इस तालाब में डूबकर आत्महत्या कर ली थी। इस घटना के कारण लोगों को यह दृढ़ विश्वास हो गया था कि जो कोई इस तालाब में स्नान करेगा या इसका पानी पिएगा, वह या तो उस मनुष्य के प्रेतात्मा से मारा ही जायगा, या यदि बच जायगा, तो उस पर कोई बहुत बड़ी विपत्ति आवेगी।
उस रात को दस बजे के बाद मैंने अपना सब असबाब अपने नौकरों के साथ अगले पड़ाव पर भेज दिया। उनके साथ कुछ क़ुली भी गए। उनको भेजकर मैं अपने बिस्तर पर लेट रहा, और उसी बरगद के नीचे कंबल ओढ़कर तीन-चार घंटे सोया।
दो बजे मैं उठा। बंदूक़ मैंने हाथ में ली। घोड़े पर मैं सवार हो गया। साथ में मैंने एक पथ-दर्शक लिया। मेरा एक नौकर भी मेरे साथ हुआ। खेतों से होकर मैं सीधा ही रवाना हुआ।