सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५९
अद्भुत इंद्रजाल


उसने यह बात हँसी में उड़ा दी। अब स्माइल्स की कहानी सुनिए---

"अब यह ठहरी कि गोरिंग का अविश्वास दूर करने के लिये उसे कोई अद्भुत खेल दिखाया जाय। उस एद्रजालिक ने हमारी बात क़बूल करली। हमने उससे कहा कि कल तुम मेजर साहब के बँगले पर तीसरे पहर आओ, और गोरिंग को अपनी विद्या दिखलाओ। उसने कहा---हुज़ूर के सामने जो कुछ सेवा बन पड़ेगी, करूँगा। बस, इतना ही कहकर उसने हम सबको बड़े अदब से सलाम किया, और वहाँ से वह चलता हुआ।

"दूसरे दिन यथासमय हम लोग मेजर साहब के बँगले पर इकट्ठे हुए। गोरिंग के सिवा और भी कई आदमी वहाँ थे। एक इंजीनियर भी तमाशा देखने के लिये आया था । वह भी मेरा मित्र था। उसका नाम था जर्मिन। वह अपने साथ तसवीर उतारने का एक छोटा-सा केमरा भी ले आया था। केमरा इतना छोटा था कि उसके पाकेट में आ जाता था। कुछ देर में हम लोगों ने दो आदमियों को, मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए, कुछ दूर पर, एक पेड़ के नीचे देखा। यह वही कल का ऐंद्रजालिक और उसका एक साथी था। हम लोगों ने उनको अपने पास बुलाया। वे आए। उनके पास था क्या? सिर्फ़ एक पिटारी, दो-एक छोटे-छोटे डिब्बे और फटे-पुराने कपड़ों और चीथड़ों की एक गठरी! बस।