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प्राचीन मेक्सिको में नरमेघ-यज्ञ


ध्वनि कानों में पड़ते ही लोग दौड़-दौड़कर उसके चरणों पर गिरते, और उसकी चरण-रज उठाकर सिर पर धारण करते। चार सुंदर युवा स्त्रियाँ सदा उसकी सेवा करतीं। जिस समय से वे उसके पास रहने लगतीं, उस समय से लोग उन्हें देवी के पवित्र नाम से पुकारने लगते। एक वर्ष तक यह देवता ख़ूब सुख भोगता। जहाँ जाता, वहाँ लोग उसका आदर करते और उसे ख़ूब अच्छा भोजन खिलाते। वह जो चाहता, सो करता; कोई उसे टोकनेवाला न था। वह एक बड़े भारी महल में रहता। जब जी चाहता, तब चाहे जिसके महल को अपने रहने के लिये खाली करा लेता। परंतु एक वर्ष के बाद उसका यह सब सुख मिट्टी में मिल जाता।

बलिदान के दिन उसके सब बहुमूल्य कपड़े उतार लिए जाते। पुजारी लोग उसे टैज़-केटली-कोपा के मदिर में ले जाते। दर्शकों की भीड़ उसके पीछे-पीछे चलती। मंदिर के निकट पहुँचते ही वह अपने फूलों के हारों को तोड़-ताड़कर भूमि पर बिखेरने लगता। अंत में उन सारंगियों और ढोलकों के तोड़ने की बारी आती, जो उसकी रंगरेलियों के साथी थे। मंदिर में पहुँचते ही छ पुजारी उसका स्वागत करते। इन छहों पुजारियों के बाल लंबे-लंबे और काले होते। वे कपड़े भी काले ही पहने रहते। उनके कपड़ों पर मेक्सिको की भाषा में लिखे हुए मंत्राक्षर चमकते रहते। छहों पुजारी उसे लेकर मंदिर के एक ऐसे ऊँचे भाग में पहुँचते, जहाँ उन्हें नीचे से सर्व-साधारण