उ०--'पात्र' उस पार्थिव मनुष्य को कहते हैं, जो अपनी शक्तियों और इंद्रियों को कुछ काल के लिये हम लोगों को दे देता है।
प्र०--किस तरह वह इन चीज़ों को दे सकता है?
उ०--उस अज्ञेय परमात्मा में विश्वास के बल पर। इटली के रोमनगर में यह प्रश्नोत्तर हुआ था।
जून, १९०६
एक ही शरीर में दो या दो से अधिक व्यक्तियों का जो बोध होता है, और उसके समय-समय पर जो अद्भुत उदाहरण पाए जाते हैं, वे आजकल के विद्वानों के लिये अजीव तमाशे मालूम पड़ते हैं। अमेरिका के हारवर्ड और एल-विश्वविद्यालय के दो अध्यापकों ने बीसवीं सदी की इस नई खोज में बहुत श्रम किया है। उन्होंने इस विषय पर एक पुस्तक लिखी है। उनका कथन है कि एक ही शरीर में भिन्न-भिन्न आत्माओं की स्थिति कोई खेल नहीं; किंतु वह मानसिक शक्ति ही का रूपांतर है। इस विषय में वे यों लिखते हैं---"एक शरीर में अनेक पुरुषों की सत्ता का बोध कोई नई बात नहीं; वह सबमें होनी चाहिए; क्योंकि अनेक क्षणिक बोधों के समुदाय का नाम मन है।"
ये लोग अपने प्रस्ताव की जाँच आजकल प्रत्यक्ष उदाहरणों