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अद्भुत आलाप


गया-सा जान पड़ता था। तीन डॉक्टरों ने समझा कि वह मर जायँगे। उनको होश में लाने की कोशिश की गई। वह एका- एक उठ बैठे, और पास के एक डॉक्टर को उन्होंने ढकेलने की चेष्टा की। डॉक्टरों ने समझा कि सरसाम हो गया है, इसलिये वह चारपाई पर बाँध दिए गए। जब वह चित लेटे, तब बंधन खोल दिए गए। उस समय हाना साहब अजीब तरह से ताकने लगे। न तो वह कुछ बोलते थे, और न लोगों की बोली ही समझते थे। अब यह हुआ कि हाना साहब तो ग़ायब हो गए, और एक बच्चे की आत्मा उनके शरीर में प्रविष्ट हो गई। वह न केवल अपने आप ही को भूल गए, किंतु मामूली चीज़ों के नाम भी भूल गए। उन्हें न कुछ समझ पड़ता था, न बोल आता था, न बोझ आदि का ज्ञान होता था। वह हाथ-पाँव उठाना और खाना-पीना आदि सभी भूल गए। सारांश यह कि पुराने हाना साहब बिलकुल ही लुप्त हो गए, और एक सद्योजात बालक उनकी जगह पर आ गया।

बालक

और बातों में तो हाना साहब बालक ही के समान हो गए, पर उनकी बुद्धि वैसी दुर्बल न थी। स्वभाव में तो यह नया जीव लुप्त हुए हाना ही के समान था। उसकी स्मरण-शक्ति भी तेज़ थी, और उसमें नक़ल करने की ताक़त भी खूब थी। पीछे से उसने अपनी मानसिक शक्ति के विषय में जो कुछ स्मरण करके कहा, वह ध्यान देने योग्य है।