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एक ही शरीर में अनेक आत्माएँ

पहले तो कमरे की सब चीज़ें हाना साहब को तसवीर के समान आँख के सामने लटकतो-सी जान पड़ीं। मानो वे उनकी आँख ही का अंश हैं। उनको रंग का तो बोध हुआ, पर दूरी और मुटाई का बोध न हुआ। पहले उन्होंने आँखें खोलीं; फिर हाथ हिलाए; फिर सिर हिलाया। यह देखकर एक डॉक्टर वहाँ से खिसका, पर हाना ने समझा, डॉक्टर का खिसकना उनके हाथ चलाने का फल है। इतने में जब बिना हाथ हिलाए उन्होंने डॉक्टर को हटते देखा, तव उन्हें आश्चर्य हुआ। तब उन्हें बोध हुआ कि ऐसी भी चीज़ें हैं, जो मुझसे संबंध नहीं रखतीं, और बिना मेरे हिल-डुल सकती हैं। कुछ देर बाद हाना को मालूम होने लगा कि वे तीनो डॉक्टर मुझसे भिन्न हैं, पर हैं एक ही व्यक्ति। अतएव यदि मैं इनमें से एक को जोत लूँ, तो तीनो मेरे वश में हो जायँगे। पर वह, हाथ-पैर कैसे उठाना होता है, यही भूल गए थे। इस कारण विवश होकर वह पड़ रहे।

शिक्षा

हाना ने डॉक्टरों को बातें करते सुना, पर वह उनकी बातों को समझ न सके। वह उनके शब्दों की नकल करने लगे। यह देखकर सब लोग हँस पड़े। दूसरे दिन फिर उन्होंने तीस-चालीस शब्दों की नकल की। तीसरे दिन उनको नासपाती दिखाई गई, और उसका नाम बतलाया गया। तब उन्होंने नासपाती कहना सीखा। वह, बार-बार नासपाती, नासपाती कहते थे। इससे लोग उन्हें नासपाती ला देते थे। उसे वह खा लेते