पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/११६

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अनासक्तियोग परं पाते हैं, मुझे भजनेवाले मुझे पाते हैं । २३ अव्यक्तं व्यक्तिमापनं मन्यन्ते मामबुद्धयः । भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥२४॥ मेरे परम अविनाशी और अनुपम स्वरूपको न जाननेवाले बुद्धिहीन लोग इंद्रियोंसे अतीत मुझको. इंद्रियगम्य मानते हैं। २४ नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः । मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥२५॥ अपनी योगमायासे ढका हुआ मैं सबके लिए प्रकट नहीं हूं। यह मूढ़ जगत मुझ अजन्मा और अव्ययको भलीभांति नहीं पहचानता । २५ टिप्पणी--इस दृश्य जगतको उत्पन्न करनेका सामर्थ्य होते हुए भी अलिप्त होनेके कारण परमात्माके अदृश्य रहनेका जो भाव है वह उसकी योगमाया है। वेदाह समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन । भविष्याणि च भूतानि मा तु वेद न कश्चन ॥२६॥ हे अर्जुन ! जो हो चुके हैं, जो है और होने- वाले सभी भूतोंको मैं जानता हूं, पर मुझे कोई नहीं जानता। २६ इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परंतफ ॥२७॥ . भारत ।